Wednesday, 8 March 2017

अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना - Ab Agar Aao To...

अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना

सिर्फ अहसान जताने के लिए मत आना

मैंने पलकों पे तमन्नाएँ सजा रखी हैं
दिल में उम्मीद की सौ शम्मे जला रखी हैं
ये हँसीं शम्मे बुझाने के लिए मत आना

 प्यार की आग में जंजीरें पिघल सकती हैं
चाहने वालों की तक़बीरें बदल सकती हैं
तुम हो बेबस ये बताने के लिए मत आना

अब तुम आना जो तुम्हें मुझसे मुहब्बत है कोई
मुझसे मिलने की अगर तुमको भी चाहत है कोई
तुम कोई रस्म निभाने के लिए मत आना
-जावेद अख़्तर 
JAVED AKHTAR

-Javed Akhtar

Tuesday, 28 February 2017

आपकी याद आती रही रात-भर - Aapki Yaad Aati Rahi Raat Bhar

आपकी याद आती रही रात-भर
चाँदनी दिल दुखाती रही रात-भर


गाह जलती हुई, गाह बुझती हुई
शम-ए-ग़म झिलमिलाती रही रात-भर



कोई ख़ुशबू बदलती रही पैरहन
कोई तस्वीर गाती रही रात-भर



फिर सबा साय-ए-शाख़े-गुल के तले
कोई क़िस्सा सुनाती रही रात-भर



जो न आया उसे कोई ज़ंजीरे-दर
हर सदा पर बुलाती रही रात-भर



एक उमीद से दिल बहलता रहा
इक तमन्ना सताती रही रात-भर

-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
Faiz Ahmed Faiz


-Faiz Ahmed Faiz


Sunday, 26 February 2017

रात चुपचाप दबे पाँव चली जाती है - Raat Chupchap Dabe Paaw...

रात चुपचाप दबे पाँव चली जाती है 

रात ख़ामोश है रोती नहीं हँसती भी नहीं 

कांच का नीला सा गुम्बद है, उड़ा जाता है 
ख़ाली-ख़ाली कोई बजरा सा बहा जाता है

चाँद की किरणों में वो रोज़ सा रेशम भी नहीं 
चाँद की चिकनी डली है कि घुली जाती है

और सन्नाटों की इक धूल सी उड़ी जाती है 
काश इक बार कभी नींद से उठकर तुम भी 

हिज्र की रातों में ये देखो तो क्या होता है

- संपूर्ण सिंह कालरा 'गुलज़ार'

-Sampoorna Singh Kalra 'Gulzar'


Saturday, 4 February 2017

इतना मत चाहो उसे, वो बेवफ़ा हो जाएगा - Itna Mat Chaho Use.....



सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा

इतना मत चाहो उसे, वो बेवफ़ा हो जाएगा


हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे, रास्ता हो जाएगा

कितनी सच्चाई से मुझसे, ज़िन्दगी ने कह दिया
तू नहीं मेरा तो कोई दूसरा हो जाएगा

मैं खुदा का नाम लेकर, पी रहा हूं दोस्तों
ज़हर भी इसमें अगर होगा, दवा हो जाएगा

सब उसी के हैं, हवा, ख़ुशबू, ज़मीन-ओ-आसमां
मैं जहां भी जाऊंगा, उसको पता हो जाएगा
-BASHIR BADRA

-बशीर बद्र 

Monday, 16 January 2017

क़रीब उन के आने के दिन आ रहे हैं - Kareeb Un Ke Aane Ke Din

#PyasaMann


नसीब आज़माने के दिन आ रहे हैं

क़रीब उन के आने के दिन आ रहे हैं



जो दिल से कहा है जो दिल से सुना है
सब उनको सुनाने के दिन आ रहे हैं



अभी से दिल-ओ-जाँ सर-ए-राह रख दो
केः लुटने-लुटाने के दिन आ रहे हैं



टपकने लगी उन निगाहों से मस्ती
निगाहें चुराने के दिन आ रहे हैं



सबा फिर हमें पूछती फिर रही है
चमन को सजाने के दिन आ रहे हैं



चलो 'फ़ैज़' फिर से कहीं दिल लगायें
सुना है ठिकाने के दिन आ रहे हैं

-Faiz Ahmed 'Faiz'

-फैज़ अहमद 'फैज़'


Sunday, 15 January 2017

रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ - Ranjish Hi sahi Dil Ko..

#PyasaMann


https://www.facebook.com/pyasamann01

रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ

आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

पहले से मरासिम* न सही, फिर भी कभी तो
रस्मों-रहे* दुनिया ही निभाने के लिए आ
(मरासिम – प्रेम-व्यहवार, रस्मों-रहे – सामाजिक शिष्टता)
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है, तो ज़माने के लिए आ

कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मोहब्बत* का भरम रख
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ
(पिन्दार-ए-मोहब्बत – मोहब्बत का गर्व)
इक उम्र से हूँ लज़्ज़त-ए-गिरिया* से भी महरूम*
ऐ राहत-ए-जाँ* मुझको रुलाने के लिए आ
(लज़्ज़त-ए-गिरिया – रोने का स्वाद, महरूम – वंचित होना, राहत-ए-जाँ – जीने का जीने का आधार)
अब तक दिल-ए-ख़ुशफ़हम* को तुझ से हैं उम्मीदें
ये आखिरी शमएँ भी बुझाने के लिए आ
(दिल-ए-ख़ुशफ़हम – किसी की ओर से अच्छा सोचने वाला मन)
माना की मुहब्बत का छिपाना है मुहब्बत
चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ

जैसे तुझे आते हैं न आने के बहाने
ऐसे ही किसी रोज़ न जाने के लिए आ
-Ahmad Faraz
-अहमद फ़राज़ 

Friday, 13 January 2017

उसकी कत्थई आँखों में हैं - Uski Katthai Ankho Me Hai

#Pyasamann

उसकी कत्थई आँखों में हैं जंतर मंतर सब


चाक़ू वाक़ू, छुरियां वुरियां, ख़ंजर वंजर सब


जिस दिन से तुम रूठीं,मुझ से, रूठे रूठे हैं
चादर वादर, तकिया वकिया, बिस्तर विस्तर सब
मुझसे बिछड़ कर, वह भी कहां अब पहले जैसी है
फीके पड़ गए कपड़े वपड़े, ज़ेवर वेवर सब
जाने मैं किस दिन डूबूँगा, फिक्रें करते हैं
दरिया वरीया,  कश्ती वस्ती, लंगर वंगर सब
इश्क़ विश्क़ के सारे नुस्खे, मुझसे सीखते हैं
सागर वागर, मंज़र वंजर, जोहर वोहर सब
तुलसी ने जो लिखा अब कुछ बदला बदला हैं
रावण वावण, लंका वंका, बन्दर वंदर  सब
-Rahat Indori

-राहत इंदौरी